樂 नारीवाद - एक दुर्घटना 樂
स्त्री के व्यक्तित्व में जिस मात्रा में प्रेम है, उसी मात्रा में क्षमा है। जितना ज्यादा प्रेम होगा, उतनी क्षमा होगी। जितना ज्यादा धैर्य होगा, उतनी क्षमा होगी। और जितना ज्यादा मातृत्व होगा, उतनी क्षमा होनी ही चाहिए। पुरुष को क्षमा अभ्यास करनी पड़ती है। स्त्री की क्षमा सहज घटित होती है। वह उसका स्वभाव है।
लेकिन अब तक ऐसा हुआ कि मनुष्य—जाति ने पुरुषों को केंद्र मानकर काम चलाया। इसलिए हम कहते हैं मनुष्य—जाति, इसलिए हम कहते हैं मैनकाइंड, सब पुरुष के नाम हैं। सब पुरुष के नाम हैं! स्त्री को हम पुरुष में सम्मिलित कर लेते हैं।
लेकिन वह भूल हो गई। स्त्री का अपना व्यक्तित्व है, पुरुष से बिलकुल अलग। और जब तक इस पृथ्वी पर स्त्री के व्यक्तित्व के जिन गुणों की कृष्ण ने यहां बात की है, वे भी सारे विकसित नहीं हो जाते, तब तक दुनिया एक इम्बैलेंस, एक असंतुलन में रहेगी। पुरुष का पलड़ा बहुत भारी होकर नीचे बैठ गया है। और स्त्री के गुण विकसित नहीं हो पाए हैं।
और अब एक दुर्घटना घट रही है दुनिया में कि स्त्रियां इस लंबी परेशानी से पीड़ित होकर एक प्रतिक्रिया में उतर रही हैं और वे कोशिश कर रही हैं पुरुषों जैसा हो जाने की। वह बड़ी से बड़ी दुर्घटना है, जो मनुष्य—जाति के ऊपर घट सकती है। स्त्रियां कोशिश कर रही हैं पुरुष जैसा हो जाने की—कपड़े—लत्तों से, व्यक्तित्व से, ढंग से, बात से। जो—जो व्यवस्था पुरुष को है, वही—वही उनको भी होनी चाहिए।
भूल है उसमें, क्योंकि स्त्री का व्यक्तित्व बुनियादी रूप से अलग है। उसे भी हक होना चाहिए खुद के विकसित करने का, उतना ही जितना पुरुष को है। लेकिन पुरुष जैसा विकसित होने का हक बहुत महंगा सौदा है। और अगर स्त्रियां पुरुष जैसी होती हैं, तो हम इस दुनिया को बिलकुल बेरौनक कर देंगे। कुछ गुण एकदम खो जाएंगे, जो स्त्रियों के ही हो सकते थे।
आज पश्चिम में कीर्ति नहीं हो सकती स्त्रियों में। श्री नहीं हो सकती। क्षमा नहीं हो सकती। धृति नहीं हो सकती। जिस स्मृति की मैंने बात कही, वैसी समग्र स्मृति नहीं हो सकती। क्योंकि वह हर मामले में पुरुष के साथ, जैसा पुरुष है, वैसा करने की कोशिश में लगी है।
इसमें नुकसान पुरुष को होने वाला नहीं है। इसमें नुकसान स्त्री को ही हो जाएगा। क्योंकि वह नंबर दो की ही पुरुष हो सकती है। पुरुष तो हो नहीं सकती, सेकेंडरी, नंबर दो की पुरुष हो सकती है। और नंबर दो की पुरुष होकर वह एकदम कुरूप और विकृत हो जाएगी।
सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन एक भीड़ में खड़ा है। टिकट खरीदने लोग खड़े हैं एक क्यू में सिनेमागृह के पास। सामने के व्यक्ति से, बड़ी देर हो गई है, वह कुछ बात करना चाहता है। उसने कहा कि देखते हैं, कैसा जमाना बिगड़ गया! सामने देखते हैं उस लड़के को, जो खिड़की के करीब पहुंच गया। लड़कियों जैसे कपड़े पहन रखे हैं! मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोसी व्यक्ति ने कहा, क्षमा करें, आप भूल में हैं। वह लड़का नहीं है, लड़की ही है। नसरुद्दीन ने कहा कि तुम्हारे पास क्या मापदंड है इतनी दूर से! मुझे बिलकुल लड़का मालूम होता है! उसने कहा, क्षमा करिए। वह मेरी ही लड़की है। लड़की है, लड़का नहीं; मेरी ही लडकी है। तब तो नसरुद्दीन ने कहा कि क्षमा करिए। मुझसे बड़ी भूल हो गई! कपड़े की वजह से यह भूल हो गई। तो आप उसके पिता हैं! उस व्यक्ति ने कहा, माफ करिए। आप फिर भूल कर रहे हैं, मैं उसकी मां हूं!
स्त्रियां कपड़े पुरुषों जैसा पहनें, चलें पुरुषों जैसा, उठें पुरुषों जैसा, पुरुष का व्यवसाय करें, पुरुष के ढंग से जीएं, पुरुष सिगरेट पीए तो वे सिगरेट पीए, पुरुष गालियां बके तो वे गालियां बके! अमेरिका में स्त्रियां उन अपशब्दों का प्रयोग कर रही हैं, जिनका कभी भी स्त्रियों ने नहीं किया था। लेकिन अगर पुरुष के बराबर समानता चाहिए, तो करना ही पड़ेगा। जो पुरुष कर रहा है, वही करना पडेगा।
तो जो पुरुष के अत्याचार से भी नहीं मिटा था, वह उनकी नासमझी से बिलकुल मिट जाएगा। स्त्रियों के गुण अलग हैं।
इसलिए कृष्ण ने उचित ही किया कि स्त्रियों के गुण अलग से गिनाए और कहा कि अगर मुझे तुझे स्त्रियों में खोजना हो तो तू कीर्ति में, श्री में, वाक् में, स्मृति में, मेधा में, धृति में और क्षमा में मुझे देख लेना।
- ओशो
गीता दर्शन (भाग - ५)
अध्याय—१०
प्रवचन - १३
मैं शाश्वत समय हूं
अध्याय—१०
प्रवचन - १३
मैं शाश्वत समय हूं
( पूरा प्रवचन Osho.com)
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