शनिवार, 4 अगस्त 2018

कृष्ण कहते हैं

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 तो कृष्ण कहते हैं, शुभ का इरादा भी, शुभ कर्म की श्रद्धा भी, दुर्गति में नहीं ले जाती है, कभी नहीं ले जाती है। सिर्फ श्रद्धा भी! जरूरी नहीं कि एक आदमी ने अच्छा काम किया हो; इतना भी काफी है कि सोचा हो; इतना भी काफी है कि कोई सोचता हो, तो उसे सहयोग दिया हो। इतना भी काफी है कि कोई कर रहा हो, तो प्रशंसा से उसकी तरफ देखा हो, तो भी वह आदमी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है।

 महावीर जब किसी को दीक्षा देते थे, तो कुछ बातें कहलवाते थे। वे कहते थे कि तुम आश्वासन दो कि बुरा कर्म नहीं करोगे। वे कहते थे, तुम आश्वासन दो कि कोई बुरा कर्म करता होगा, तो तुम उसे प्रोत्साहन नहीं दोगे। आश्वासन दो कि कोई बुरा कर्म करता होगा, तो तुम उसकी तरफ प्रशंसा से देखोगे भी नहीं।

 वह आदमी पूछता, मैं बुरा कर्म नहीं करूंगा। लेकिन ये दूसरी बातें क्या हैं, कि मैं प्रोत्साहन भी न दूंगा! कि मैं प्रशंसा से देखूंगा भी नहीं!

 एक आदमी रास्ते पर किसी को पीट रहा है। आप नहीं पीट रहे; आपका कोई संबंध नहीं। आप सिर्फ रास्ते से गुजरते हैं। लेकिन आपकी आंख की एक झलक उस पीटने वाले को कह जाती है कि मेरी पीठ थपथपाई गई। बस, पाप हो गया, बीज बो दिया गया।

 ठीक महावीर ऐसे ही कहते थे, अच्छा कर्म करना। कोई अच्छा कर्म करता हो, तो प्रोत्साहन देना। कोई अच्छा कर्म करता हो, कुछ न बन सके, तो अपनी आंख से, अपने इशारे से सहारा देना।

 लेकिन एक आदमी को संन्यास लेना हो, तो आप सब मिलकर क्या करेंगे? आप कहेंगे, क्या कर रहे हो! पागल हो गए हो? बुद्धि ठिकाने है? आपको पता नहीं कि वह आदमी तो संन्यास की भावना करके भी न भी ले पाए, तो भी सदगति की व्यवस्था कर रहा है। और आप अकारण, आप कोई न थे बीच में, आप कह रहे हैं, पागल हो गए हो? दिमाग खराब हो गया? बुद्धि खो दी? आपको पता भी नहीं है कि आप व्यर्थ ही बीज बो रहे हो, जो आपको भटकाने का कारण हो जाएंगे।

 लेकिन हमें खयाल ही नहीं होता कि हम क्या कर रहे हैं! हमें खयाल ही नहीं होता।
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